भगवान श्रीराम की जन्म कुंडली का विश्लेषण |

मर्यादा पुरुषोत्तम
भगवान श्रीराम की जन्म कुंडली की विश्लेषण करने का प्रयास कर रहा हु! भुल चुक माफ करे । पंडित पंकज मिश्र ज्योतिष कोलकाता “वर्णानामर्थसंघानां रसानां छन्दसामपि।
मङ्गलानां च कर्त्तारौ वन्दे वाणीविनायकौ।।1

भावार्थ

अक्षरों, अर्थ समूहों, रसों, छन्दों और मंगलों को करने वाली सरस्वतीजी और गणेशजी की मैं वंदना करता हूँ॥1 #pankaj

” नौमी तिथि मधु मास पुनीता*।
सुकल पच्छ अभिजित हरिप्रीता॥
मध्यदिवस अति सीत न घामा।
पावन काल लोक बिश्रामा॥

चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को पुनर्वसु नक्षत्र में सूर्य, मंगल शनि, वृहस्पति तथा शुक्र अपने-अपने उच्च स्थानों में थे, कर्क लग्न का उदय होते ही महाराज श्री दशरथ जी की बड़ी रानी कौशल्या जी से भगवान श्री राम जी , कैकेयी जी से श्री भरत जी और सुमित्रा जी से श्रीलक्ष्मण जी और श्री शत्रुघ्न जी को जन्म दिया।

‌अखिल कोटि ब्रह्माण्ड नायक मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्री राम जी के पावन राज्याभिषेक
आप सभी को मंगल बधाई शुभकामना

राम जन्म के दिन पाँच ग्रह अपने उच्च स्थान में स्थापित थे, नौमी तिथि चैत्र शुक्लपक्ष तथा पुनर्वसु नक्षत्र था। जिसके अनुसार सूर्य मेष में 10 डिग्री, मंगल मकर में 28 डिग्री, ब्रहस्पति कर्क में 5 डिग्री पर, शुक्र मीन में 27 डिग्री पर एवं शनि तुला राशि में 20 डिग्री पर था।
वाल्मीकिजी तथा बाबा तुलसीदास नें अपने ग्रंथों #रामायण में लिखा है कि रामजन्म मध्यान्ह में हुआ था। मंगल सप्तम भाव में अपनी उच्च राशि मकर में स्थित होकर लग्न को पूर्ण दृष्टि से देख रहा है। इस कुंडली में दो सौम्य ग्रहों- गुरु एवं चन्द्र को दो पाप ग्रह शनि एवं मंगल अपनी-अपनी उच्च राशि में स्थित होकर देख रहे हैं। ऐसी स्थिति में प्रबल राजभंग योग बनता है। फलस्वरूप #श्रीराम के राज्याभिषेक से लेकर जीवनपर्यंत सभी कार्यों में बाधाएँ पैदा होती रहीं। जिस समय श्रीराम का राज्याभिषेक होने जा रहा था, उस समय शनि महादशा में मंगल का अंतर चल रहा था। वैवाहिक सुख न मिलने का कारण गुरु की सप्तम भाव पर नीच दृष्टि होना व शनि-मंगल का दृष्टि संबंध रहा। #पंकज।वाल्मीकि रामायण के अयोध्याकांड, सर्ग 4, श्लोक 16, 17, 18, 19 में वर्णित है कि महाराज दशरथ श्रीराम को राजा बनाना चाहते थे।

सूर्य, मंगल और राहु ने उनके नक्षत्र को घेर रखा था।
ऐसी स्थिति वाले नक्षत्र में या तो राजा की मृत्यु होता है या फिर वह साजिशों का शिकार होता है।

महाराज दशरथ की राशि मीन थी ओर उनका नक्षत्र रेवती था।

नक्षत्रों की दशा 5 जनवरी 5089 बी.सी को कुछ ऐसी ही थी।

इसी दिन श्रीराम अयोध्या से 14 वर्ष के लिए वनवास को चले थे।
उस समय वे 25 साल के थे।

उनकी इस उम्र की पुष्टि करने वाले कई श्लोक आदि कवि महर्षि वाल्मीकि की रचना में मौजूद हैं।
वाल्मीकि रामायण के अनुसार जब रावण की मृत्यु हुई, वह समय 4 दिसम्बर 5076 बी.सी का था।

श्रीराम ने 14 साल का वनवास 2 जनवरी 5075 बी. सी को पूरा कर लिया था।
श्रीराम 39 वर्ष की उम्र में अयोध्या वापस आते हैं।

जब वन के लिए गए थे
युवराज श्रीराम थे,
जब लौटे थे
मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम थे।
संपूर्ण संस्कृति पुरुष थे।

22 जनवरी 2024 : भारतीय सभ्यता और संस्कृति के ऐतिहासिक कालखंड के भीतर सर्वाधिक मार्मिक और निर्णायक तारीख है।

ऐसा मंगल गान कीजिए सभी लोग कि सम्पूर्ण विश्व राममय होता दिखे।

••• राम फिर लौटे;

पौराणिक कथानुसार राम नवमी के ही दिन त्रेता युग में महाराज दशरथ के घर विष्णु जी के अवतार भगवान श्री राम का जन्म हुआ था। मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान राम का जन्म रावण के अंत के लिए हुआ था। श्रीराम को लोग उनके सुशासन, मर्यादित व्यवहार और सदाचार युक्त शासन के लिए याद करते हैं। उत्तर भारत समेत देश के कई हिस्सों में राम नवमी का त्यौहार पूरे हर्षोत्साह के साथ मनाया जाता
है।
‘भए प्रकट कृपाला, दीन दयाला, कौशल्या हितकारी।
हरषित मतहारी, मुनि मन हारी, अद्भुत रूप विचारी।’
राम ईश्वर के अंश हैं। मनु और शतरूपा ने घोर तप से प्रभु को पाने का वरदान पाया था। मनु को दशरथ और शतरूपा को कौशल्या माना गया। अपने बाल्यकाल की लीलाओं से भक्तों को आनंदित करते हुए भगवान राम ने ‘आचार्य देवो भव, मातृ देवो भव, पितृ देवो भव’ का क्रियात्मक रूप से पालन किया। उनका यह पावन चरित्र-‘प्रातः काल उठ कै रघुनाथा, मातु-पिता गुरु नावहि माथा।’ नयी पीढ़ी को बड़ों का सत्कार करने की प्रेरणा देता है। जय श्री राम श्री राम जी की राज्याभिषेक की की हार्दिक शुभकामना।। रामस्य चरितं श्रुत्वा धारयेयुर्गुणाञ्जनाः।
भविष्यति तदा ह्येतत् सर्वं राममयं जगत।।

प्रभु श्रीराम के चरित्र को सुनकर जब मनुष्य अपने जीवन में उन गुणों को धारण करेंगे, तो यह संसार राममय हो जायेगा। #पंकज

जय जय श्री राम 🌹🙏🚩
#पंडितपंकजमिश्र #ज्योतिष_कोलकता ।

जानिए रामायण” क्या है??

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