विषकन्या योग क्या है
यह योग विशिष्ठ तिथि एवं नक्षत्र के योग से या सूर्य मंगल शनि के विशेष स्थान में स्थिति से बनता है।
विषकन्या वाली जातिका का जीवन अत्यंत अभाग्यशाली होता है।
उसे या तो संतान होती नहीं है।
और संतान होती है तो होकर मर जाती है।
इनकी शादी किसी भी संपन्न परिवार या योग्य लड़के से ही क्यों ना की जाए,
लेकिन इनको दीन हीन जीवन बिताना पड़ता है।
और पति से अच्छे संबंध नहीं रहते।
जिस कन्या का जन्म तुला लग्न में शनि चंद्र सप्तम भाव में हो कृष्ण पक्ष या शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को रविवार के दिन शतभिषा नक्षत्र में हो, तो वह विषकन्या होती है।
जिस कन्या का जन्म कृष्ण पक्ष या शुक्ल पक्ष की द्वादशी तिथि को शनिवार के दिन कृतिका नक्षत्र में हो तो वह विषकन्या होती है।
जिस कन्या का जन्म कृष्ण पक्ष या शुक्ल पक्ष की सप्तमी को मंगलवार के दिन अशलेशा या विशाखा नक्षत्र में हो तो वह विषकन्या होती है।
अब सूर्य शनि मंगल ग्रहों से बनने वाले विषकन्या योग निम्न है
1/जिस कन्या की कुंडली में लग्न में मंगल और पंचम में सूर्य हो तो वह विषकन्या होगी।
2 .जिस कन्या की लग्न में सूर्य और पंचम में शनि हो तो वह विषकन्या होगी
अब विषकन्या योग के परिहार
यदि कन्या की कुंडली में जन्म लग्न या चंद्र लग्न से सप्तम में सप्तमेश बैठा हो ।
और शुभ ग्रहों से युक्त हो तो विषकन्या योग नष्ट हो जाता है।
यदि कुंडली में कोई परिहार ना हो रहा हो ।
तो ऐसी कन्या की शादी किसी लड़के से करने से पहले शालिग्राम विवाह या पीपल के पेड़ से विवाह करना चाहिए।
वट सावित्री का व्रत रहने से भी विष कन्या दोष शांत हो जाता है। पंडित पंकज मिश्र ज्योतिष कोलकाता।।