12 प्रमुख कालसर्प योग और उनके उपाय
अनन्त कालसर्प योग
जब जन्मकुंडली में राहु लग्न में व केतु सप्तम में हो और उस बीच सारे ग्रह हों तो अनन्त नामक कालसर्प योग बनता है। ऐसे जातकों के व्यक्तित्व निर्माण में कठिन परिश्रम की जरूरत पड़ती है। उसके विद्यार्जन व व्यवसाय के काम बहुत सामान्य ढंग से चलते हैं और इन क्षेत्रों में थोड़ा भी आगे बढ़ने के लिए जातक को कठिन संघर्ष करना पड़ता है। मानसिक पीड़ा कभी-कभी उसे घर- गृहस्थी छोड़कर वैरागी जीवन अपनाने के लिए भी उकसाया करती हैं।लाटरी, शेयर व सूद के व्यवसाय में ऐसे जातकों की विशेष रुचि रहती हैं किंतु उसमें भी इन्हें ज्यादा हानि ही होती है। शारीरिक रूप से उसे अनेक व्याधियों का सामना करना पड़ता है। उसकी आर्थिक स्थिति बहुत ही डावाडोल रहती है। फलस्वरूप उसकी मानसिक व्यग्रता उसके वैवाहिक जीवन में भी जहर घोलने लगती है। जातक को माता-पिता के स्नेह व संपत्ति से भी वंचित रहना पड़ता है। उसके निकट संबंधी भी नुकसान पहुंचाने से बाज नहीं आते। कई प्रकार के षडयंत्रों व मुकदमों में फंसे ऐसे जातक की सामाजिक प्रतिष्ठा भी घटती रहती है। उसे बार-बार अपमानित होना पड़ता है। लेकिन प्रतिकूलताओं के बावजूद जातक के जीवन में एक ऐसा समय अवश्य आता है जब चमत्कारिक ढंग से उसके सभी कष्ट दूर हो जाते हैं। वह चमत्कार किसी कोशिश से नहीं, अचानक घटित होता है। सम्पूर्ण समस्याओं के बाद भी जरुरत पड़ने पर किसी चिज की इन्हें कमी नहीं रहती है। यह किसी का बुरा नहीं करते हैं। जो जातक इस योग से ज्यादा परेशानी महसूस करते हैं। उन्हें निम्नलिखित उपाय कर लाभ उठाना चाहिए।अनुकूलन के उपाय –
प्रतिदिन इक्कीस माला ‘ॐ नम: शिवाय’ मंत्र का जाप करें। रोजाना भगवान शिव का जलाभिषेक करें।
कालसर्पदोष निवारक #यंत्र घर में स्थापित करके सरसों के तेल का दिपक जला कर नियमित पूजन करें।
नाग के जोड़े चांदी के बनवाकर उन्हें तांबे के लौटे में रख बहते पानी में एक बार प्रवाहित कर दें।
प्रतिदिन स्नानोपरांत नवनागस्तोत्र का पाठ करें।
कुलिक कालसर्प योग
राहु दूसरे घर में हो और केतु अष्टम स्थान में हो और सभी ग्रह इन दोनों ग्रहों के बीच में हो तो कुलिक नाम कालसर्प योग होगा। जातक को अपयश का भी भागी बनना पड़ता है। इस योग की वजह से जातक की पढ़ाई-लिखाई सामान्य गति से चलती है और उसका वैवाहिक जीवन भी सामान्य रहता है। परंतु आर्थिक परेशानियों की वजह से उसके वैवाहिक जीवन में भी जहर घुल जाता है। मित्रों द्वारा धोखा, संतान सुख में बाध और व्यवसाय में संघर्ष कभी उसका पीछा नहीं छोड़ते। जातक का स्वभाव भी विकृत हो जाता है। मानसिक असंतुलन और शारीरिक व्याधियां झेलते-झेलते वह समय से पहले ही बूढ़ा हो जाता है। उसके उत्साह व पराक्रम में निरंतर गिरावट आती जाती है। उसका कठिन परिश्रमी स्वभाव उसे सफलता के शिखर पर भी पहुंचा देता है। परंतु इस फल को वह पूर्णतय: सुखपूर्वक भोग नहीं पाता है। ऐसे जातकों को इस योग की वजह से होने वाली परेशानियों को दूर करने के लिए निम्नलिखित उपायों का अवलंबन लेना चाहिए। अनुकूलन के उपाय –
विद्यार्थीजन सरस्वती जी के बीज मंत्रों का एक वर्ष तक जाप करें और विधिवत उपासना करें।
देवदारु, सरसों तथा लोहवान को उबालकर उस पानी से सवा महीने तक स्नान करें।
शुभ मुहूर्त में बहते पानी में कोयला तीन बार प्रवाहित करें।
हनुमान चालीसा का 108 बार पाठ करें।
श्रावण मास में 30 दिनों तक महादेव का अभिषेक करें।
शनिवार औ मंगलवार का व्रत रखें और शनि मंदिर में जाकर भगवान शनिदेव कर पूजन करें व तैलाभिषेक करें, इससे तुरंत कार्य सफलता प्राप्त होती है।
राहु की दशा आने पर प्रतिदिन एक माला राहु मंत्र का जाप करें और जब जाप की संख्या 18 हजार हो जाये तो राहु की मुख्य समिध दुर्वा से पूर्णाहुति हवन कराएं और किसी गरीब को उड़द व नीले वस्त्र का दान करें।
वासुकी कालसर्प योग
राहु तीसरे घर में और केतु नवम स्थान में और इस बीच सारे ग्रह ग्रसित हों तो वासुकी नामक कालसर्प योग बनता है। वह भाई-बहनों से भी परेशान रहता है। अन्य पारिवारिक सदस्यों से भी आपसी खींचतान बनी रहती है। रिश्तेदार एवं मित्रगण उसे प्राय: धोखा देते रहते हैं। घर में सुख-शांति का अभाव रहता है। जातक को समय-समय पर व्याधि ग्रसित करती रहती हैं जिसमें अधिक धन खर्च हो जाने के कारण उसकी आर्थिक स्थिति भी असामान्य हो जाती है। अर्थोपार्जन के लिए जातक को विशेष संघर्ष करना पड़ता है, फिर भी उसमें सफलता संदिग्ध रहती है। चंद्रमा के पीड़ित होने के कारण उसका जीवन मानसिक रूप से उद्विग्न रहता है। इस योग के कारण जातक को कानूनी मामलों में विशेष रूप से नुकसान उठाना पड़ता है। राज्यपक्ष से प्रतिकूलता रहती है। जातक को नौकरी या व्यवसाय आदि के क्षेत्र में निलम्बन या नुकसान उठाना पड़ता है। यदि जातक अपने जन्म स्थान से दूर जाकर कार्य करें तो अधिक सफलता मिलती है। लेकिन सब कुछ होने के बाद भी जातक अपने जीवन में बहुत सफलता प्राप्त करता है। विलम्ब से उत्तम भाग्य का निर्माण भी होता है और शुभ कार्य सम्पादन हेतु उसे कई अवसर प्राप्त होते हैं। अनुकूलन के उपाय –
नवनाग स्तोत्र का एक वर्ष तक प्रतिदिन पाठ करें।
प्रत्येक बुधवार को काले वस्त्रमें उड़द या मूंग एक मुट्ठी डालकर, राहु का मंत्र जप कर भिक्षाटन करने वाले को दे दें। यदि दान लेने वाला कोई नहीं मिले तो बहते पानी में उस अन्न हो प्रवाहित करें। 72 बुधवार तक करने से अवश्य लाभ मिलता है।
महामृत्युंजय मंत्रका जाप प्रतिदिन 11 माला रोज करें, जब तक राहु केतु की दशा-अंर्तदशा रहे और हर शनिवार को श्री शनिदेव का तैलाभिषेक करें और मंगलवार को हनुमान जी को चौला चढ़ायें।
किसी शुभ मुहूर्त में नाग पाश यंत्रको अभिमंत्रित कर धरण करें।
शंखपाल कालसर्प योग
राहु चौथे स्थान में और केतु दशम स्थान में हो इसके बीच सारे ग्रह हो तो शंखपाल नामक कालसर्प योग बनता है। इससे घर-द्वार, जमीन-जायदाद व चल- अचल संपत्ति संबंधी थोड़ी बहुत कठिनाइयां आती हैं और उससे जातक को कभी-कभी बेवजह चिंता घेर लेती है तथा विद्या प्राप्ति में भी उसे आंशिक रूप से तकलीफ उठानी पड़ती है। जातक को माता से कोई, न कोई किसी न किसी समय आंशिक रूप में तकलीफ मिलती है। सवारी एवं नौकरों की वजह से भी कोई न कोई कष्ट होता ही रहता है। इसमें उन्हें कुछ नुकसान भी उठाना पड़ता है। जातक का वैवाहिक जीवन सामान्य होते हुए भी वह कभी-कभी तनावग्रस्त हो जाता है। चंद्रमा के पीड़ित होने के कारण जातक समय-समय पर मानसिक संतुलन खोया रहता है। कार्य के क्षेत्र में भी अनेक विघ्न आते हैं। पर वे सब विघ्न कालान्तर में स्वत: नष्ट हो जाते हैं। बहुत सारे कामों को एक साथ करने के कारण जातक का कोई भी काम प्राय: पूरा नहीं हो पाता है। इस योग के प्रभाव से जातक का आर्थिक संतुलन बिगड़ जाता है, जिस कारण आर्थिक संकट भी उपस्थित हो जाता है। लेकिन इतना सब कुछ हो जाने के बाद भी जातक को व्यवसाय, नौकरी तथा राजनीति के क्षेत्र में बहुत सफलताएं प्राप्त होती हैं एवं उसे सामाजिक पद प्रतिष्ठा भी मिलती है।यदि उपरोक्त परेशानी महसूस करते हैं तो निम्नलिखित उपाय करें। अवश्य लाभ मिलेगा।अनुकूलन के उपाय –
शुभ मुहूर्त में मुख्य द्वार पर चाँदी का स्वस्तिक एवं दोनों ओर धतु से निर्मित नाग चिपका दें।
शुभ मुहूर्त में सूखे नारियल के फल को जल में तीन बार प्रवाहित करें।
86 शनिवार का व्रत करें और राहु, केतु व शनि के साथ हनुमान की आराधना करें। और हनुमान जी को मंगलवार को चौला चढ़ायें और शनिवार को श्री शनिदेव का तैलाभिषेक करें।
किसी शुभ मुहूर्त में एकाक्षी नारियल अपने ऊपर से सात बार उतारकर सात बुधवार को गंगा या यमुना जी में प्रवाहित करें।
सवा महीने जौ के दाने पक्षियों को खिलाएं।
शुभ मुहूर्त में सर्वतोभद्रमण्डल यंत्र को पूजित कर धरण करें।
नित्य प्रति हनुमान चालीसा पढ़ें और भोजनालय में बैठकर भोजन करें।
हनुमान चालीसा का 108 बार पाठ करें और पांच मंगलवार का व्रत करते हुए हनुमान जी को चमेली के तेल में घुला सिंदूर व बूंदी के लड्डू चढ़ाएं।
काल सर्प दोष निवारण यंत्रघर में स्थापित कर उसका प्रतिदिन पूजन करें और शनिवार को कटोरी में सरसों का तेल लेकर उसमें अपना मुंह देख एक सिक्का अपने सिर पर तीन बार घुमाते हुए तेल में डाल दें और उस कटोरी को किसी गरीब आदमी को दान दे दें अथवा पीपल की जड़ में चढ़ा दें।
सवा महीने तक जौ के दाने पक्षियों को खिलाएं और प्रत्येक शनिवार को चींटियों को शक्कर मिश्रित सत्तू उनके बिलों पर डालें।
किसी शुभ मुहूर्त में सूखे नारियल के फल को बहते जल में तीन बार प्रवाहित करें तथा किसी शुभ मुहूर्त में शनिवार के दिन बहते पानी में तीन बार कोयला भी प्रवाहित करें।
पद्म कालसर्प योग
राहु पंचम व केतु एकादश भाव में तथा इस बीच सारे ग्रह हों तो पद्म कालसर्प योग बनता है। इसके कारण जातक के विद्याध्ययन में कुछ व्यवधान उपस्थित होता है। परंतु कालान्तर में वह व्यवधान समाप्त हो जाता है। उन्हें संतान प्राय: विलंब से प्राप्त होती है, या संतान होने में आंशिक रूप से व्यवधन उपस्थित होता है। जातक को संतान की प्राय: चिंता बनी रहती है। जातक का स्वास्थ्य कभी-कभी असामान्य हो जाता है। इस योग के कारण दाम्पत्य जीवन सामान्य होते हुए भी कभी-कभी अधिक तनावपूर्ण हो जाता है। परिवार में जातक को अपयश मिलने का भी भय बना रहता है। जातक के मित्रगण स्वार्थी होते हैं और वे सब उसका पतन कराने में सहायक होते हैं। जातक को तनावग्रस्त जीवन व्यतीत करना पड़ता है। इस योग के प्रभाव से जातक के गुप्त शत्रु भी होते हैं। वे सब उसे नुकसान पहुंचाते हैं। उसके लाभ मार्ग में भी आंशिक बाध उत्पन्न होती रहती है एवं चिंता के कारण जातक का जीवन संघर्षमय बना रहता है। जातक द्वारा अर्जित सम्पत्ति को प्राय: दूसरे लोग हड़प लेते हैं। जातक को व्याधियां भी घेर लेती हैं। इलाज में अधिक धन खर्च हो जाने के कारण आर्थिक संकट उपस्थित हो जाता है। जातक वृध्दावस्था को लेकर अधिक चिंतित रहता है एवं कभी-कभी उसके मन में संन्यास ग्रहण करने की भावना भी जागृत हो जाती है। लेकिन इतना सबकुछ होने के बाद भी एक समय ऐसा आता है कि यह जातक आर्थिक दृष्टि से बहुत मजबूत होता है, समाज में मान-सम्मान मिलता है और कारोबार भी ठीक रहता है यदि यह जातक अपना चाल-चलन ठीक रखें, मध्यपान न करें और अपने मित्रकी सम्पत्ति को न हड़पे तो उपरोक्त कालसर्प प्रतिकूल प्रभाव लागू नहीं होते हैं।अनुकूलन के उपाय –
शुभ मुहूर्त में मुख्य द्वार पर चाँदी का स्वस्तिक एवं दोनों ओर धतु से मिर्मित नाग चिपका दें।
शुक्ल पक्ष के प्रथम शनिवार से व्रत प्रारंभ कर 18 शनिवारों तक व्रत करें और काला वस्त्रधारण कर 18 या 3 ाला राहु के बीज मंत्र का जाप करें। फिर एक बर्तन में जल दुर्वा और कुशा लेकर पीपल की जड़ में चढ़ाएं। भोजन में मीठा चूरमा, मीठी रोटी, समयानुसार रेवड़ी तिल के बने मीठे पदार्थ सेवन करें और यही वस्तुएं दान भी करें। रात में घी का दीपक जलाकर पीपल की जड़ में रख दें। नाग पंचमी का व्रत भी अवश्य करें।
नित्य प्रति हनुमान चालीसा का 11 बार पाठ करें और हर शनिवार को लाल कपड़े में आठ मुट्ठी भिंगोया चना व ग्यारह केले सामने रखकर हनुमान चालीसा का 108 बार पाठ करें और उन केलों को बंदरों को खिला दें और प्रत्येक मंगलवार को हनुमान जी के मंदिर में बूंदी के लड्डु का भोग लगाएं और हनुमान जी की प्रतिमा पर चमेली के तेल में घुला सिंदूर चढ़ाएं और साथ ही श्री शनिदेव का तैलाभिषेक करें। ऐसा करने से वासुकी काल सर्प योग के समस्त दोषों की शांति हो जाती है।
श्रावण के महीने में प्रतिदिन स्नानोपरांत 11 माला ‘ॐ नम: शिवाय’ मंत्र का जप करने के उपरांत शिवजी को बेलपत्रव गाय का दूध तथा गंगाजल चढ़ाएं तथा सोमवार का व्रत करें।
महापद्म कालसर्प योग
राहु छठे भाव में और केतु बारहवे भाव में और इसके बीच सारे ग्रह अवस्थित हों तो महापद्म कालसर्प योग बनता है। इस योग में जातक शत्रु विजेता होता है, विदेशों से व्यापार में लाभ कमाता है लेकिन बाहर ज्यादा रहने के कारण उसके घर में शांति का अभाव रहता है। इस योग के जातक को एक ही चिज मिल सकती है धन या सुख। इस योग के कारण जातक यात्रा बहुत करता है उसे यात्राओं में सफलता भी मिलती है परन्तु कई बार अपनो द्वारा धेखा खाने के कारण उनके मन में निराशा की भावना जागृत हो उठती है एवं वह अपने मन में शत्रुता पालकर रखने वाला भी होता है। जातक का चरित्र भी बहुत संदेहास्पद हो जाता है। उसके धर्म की हानि होती है। वह समय-समय पर बुरा स्वप्न देखता है। उसकी वृध्दावस्था कष्टप्रद होती है। इतना सब कुछ होने के बाद भी जातक के जीवन में एक अच्छा समय आता है और वह एक अच्छा दलील देने वाला वकील अथवा तथा राजनीति के क्षेत्र में सफलता पाने वाला नेता होता है।अनुकूलन के उपाय –
श्रावणमास में 30 दिनों तक महादेव का अभिषेक करें।
शुक्ल पक्ष के प्रथम शनिवार से शनिवार व्रत आरंभ करना चाहिए। यह व्रत 18 बार करें। काला वस्त्रधरण करके 18 या 3 राहु बीज मंत्र की माला जपें। तदन्तर एक बर्तन में जल, दुर्वा और कुश लेकर पीपल की जड़ में डालें। भोजन में मीठा चूरमा, मीठी रोटी समयानुसार रेवड़ी, भुग्गा, तिल के बने मीठे पदार्थ सेवन करें और यही दान में भी दें। रात को घी का दीपक जलाकर पीपल की जड़ के पास रख दें।
इलाहाबाद (प्रयाग) में संगम पर नाग-नागिन की विधिवत पूजन कर दूध के साथ संगम में प्रवाहित करें एवं तीर्थराज प्रयाग में संगम स्थान में तर्पण श्राध्द भी एक बार अवश्य करें।
मंगलवार एवं शनिवार को रामचरितमानस के सुंदरकाण्ड का 108 बार पाठ श्रध्दापूर्वक करें।
तक्षक कालसर्प योग
केतु लग्न में और राहु सप्तम स्थान में हो तो तक्षक नामक कालसर्प योग बनता है। कालसर्प योग की शास्त्रीय परिभाषा में इस प्रकार का अनुदित योग परिगणित नहीं है। लेकिन व्यवहार में इस प्रकार के योग का भी संबंधित जातकों पर अशुभ प्रभाव पड़ता देखा जाता है। तक्षक नामक कालसर्प योग से पीड़ित जातकों को पैतृक संपत्ति का सुख नहीं मिल पाता। या तो उसे पैतृक संपत्ति मिलती ही नहीं और मिलती है तो वह उसे किसी अन्य को दान दे देता है अथवा बर्बाद कर देता है। ऐसे जातक प्रेम प्रसंग में भी असफल होते देखे जाते हैं। गुप्त प्रसंगों में भी उन्हें धेखा खाना पड़ता है। वैवाहिक जीवन सामान्य रहते हुए भी कभी-कभी संबंध इतना तनावपूर्ण हो जाता है कि अलगाव की नौबत आ जाती है। जातक को अपने घर के अन्य सदस्यों की भी यथेष्ट सहानुभूति नहीं मिल पाती। साझेदारी में उसे नुकसान होता है तथा समय-समय पर उसे शत्रु षडयंत्रों का शिकार बनना पड़ता है। जुए, सट्टे व लाटरी की प्रवृत्ति उस पर हावी रहती है जिससे वह बर्बादी के कगार पर पहुंच जाता है। संतानहीनता अथवा संतान से मिलने वाली पीड़ा उसे निरंतर क्लेश देती रहती है। उसे गुप्तरोग की पीड़ा भी झेलनी पड़ती है। किसी को दिया हुआ धन भी उसे समय पर वापस नहीं मिलता। यदि यह जातक अपने जीवन में एक बात करें कि अपना भलाई न सोच कर ओरों का भी हित सोचना शुरु कर दें साथ ही अपने मान-सम्मान के दूसरों को नीचा दिखाना छोड़ दें तो उपरोक्त समस्याएं नहीं आती।अनुकूलन के उपाय –
कालसर्प दोष निवारण यंत्र घर में स्थापित करके, इसका नियमित पूजन करें।
सवा महीने जौ के दाने पक्षियों को खिलाएं।
देवदारु, सरसों तथा लोहवान – इन तीनों को उबालकर एक बार स्नान करें।
शुभ मुहूर्त में बहते पानी में मसूर की दाल सात बार प्रवाहित करें और उसके बाद लगातार पांच मंगलवार को व्रत रखते हुए हनुमान जी की प्रतिमा में चमेली में घुला सिंदूर अर्पित करें और बूंदी के लड्डू का भोग लगाकर प्रसाद वितरित करें। अंतिम मंगलवार को सवा पांव सिंदूर सवा हाथ लाल वस्त्र और सवा किलो बताशा तथा बूंदी के लड्डू का भोग लगाकर प्रसाद बांटे।
कर्कोटक कालसर्प योग
केतु दूसरे स्थान में और राहु अष्टम स्थान में कर्कोटक नाम कालसर्प योग बनता है। जैसा कि हम इस बात को पहले भी स्पष्ट कर चुके हैं, ऐसे जातकों के भाग्योदय में इस योग की वजह से कुछ रुकावटें अवश्य आती हैं। नौकरी मिलने व पदोन्नति होने में भी कठिनाइयां आती हैं। कभी-कभी तो उन्हें बड़े ओहदे से छोटे ओहदे पर काम करने का भी दंड भुगतना पड़ता है। पैतृक संपत्ति से भी ऐसे जातकों को मनोनुकूल लाभ नहीं मिल पाता। व्यापार में भी समय-समय पर क्षति होती रहती है। कोई भी काम बढ़िया से चल नहीं पाता। कठिन परिश्रम के बावजूद उन्हें पूरा लाभ नहीं मिलता। मित्रों से धोखा मिलता है तथा शारीरिक रोग व मानसिक परेशानियों से व्यथित जातक को अपने कुटुंब व रिश्तेदारों के बीच भी सम्मान नहीं मिलता। चिड़चिड़ा स्वभाव व मुंहफट बोली से उसे कई झगड़ों में फंसना पड़ता है। उसका उधार दिया पैसा भी डूब जाता है। शत्रु षडयंत्र व अकाल मृत्यु का जातक को बराबर भय बना रहता है। उक्त परेशानियों से बचने के लिए जातक निम्न उपाय कर सकते हैं।अनुकूलन के उपाय –
हनुमान चालीसा का 108 बार पाठ करें और पांच मंगलवार का व्रत करते हुए हनुमान जी को चमेली के तेल में घुला सिंदूर व बूंदी के लड्डू चढ़ाएं।
कालसर्प_दोष निवारण यंत्र घर में स्थापित कर उसका प्रतिदिन पूजन करें और शनिवार को कटोरी में सरसों का तेल लेकर उसमें अपना मुंह देख एक सिक्का अपने सिर पर तीन बार घुमाते हुए तेल में डाल दें और उस कटोरी को किसी गरीब आदमी को दान दे दें अथवा पीपल की जड़ में चढ़ा दें।
सवा महीने तक जौ के दाने पक्षियों को खिलाएं और प्रत्येक शनिवार को चींटियों को शक्कर मिश्रित सत्तू उनके बिलों पर डालें।
अपने सोने वाले कमरे में लाल रंग के पर्दे, चादर व तकियों का प्रयोग करें।
किसी शुभ मुहूर्त में सूखे नारियल के फल को बहते जल में तीन बार प्रवाहित करें तथा किसी शुभ मुहूर्त में शनिवार के दिन बहते पानी में तीन बार कोयला भी प्रवाहित करें।
शंखचूड़_कालसर्प योग ।।
केतु तीसरे स्थान में व राहु नवम स्थान में शंखचूड़ नामक कालसप्र योग बनता है। इस योग से पीड़ित जातकों का भाग्योदय होने में अनेक प्रकार की अड़चने आती रहती हैं। व्यावसायिक प्रगति, नौकरी में प्रोन्नति तथा पढ़ाई – लिखाई में वांछित सफलता मिलने में जातकों को कई प्रकार के विघ्नों का सामना करना पड़ता है। इसके पीछे कारण वह स्वयं होता है क्योंकि वह अपनो का भी हिस्सा छिनना चाहता है। अपने जीवन में धर्म से खिलवाड़ करता है। इसके साथ ही उसका अपना अत्याधिक आत्मविश्वास के कारण यह सारी समस्या उसे झेलनी पड़ती है। अधिक सोच के कारण शारीरिक व्याधियां भी उसका पीछा नहीं छोड़ती। इन सब कारणों के कारण सरकारी महकमों व मुकदमेंबाजी में भी उसका धन खर्च होता रहता है। उसे पिता का सुख तो बहुत कम मिलता ही है, वह ननिहाल व बहनोइयों से भी छला जाता है। उसके मित्र भी धेखाबाजी करने से बाज नहीं आते। उसका वैवाहिक जीवन आपसी वैमनस्यता की भेंट चढ़ जाता है। उसे हर बात के लिए कठिन संघर्ष करना पड़ता है। उसे समाज में यथेष्ट मान-सम्मान भी नहीं मिलता। उक्त परेशानियों से बचने के लिए उसे अपना को अपनाना पड़ेगा, अपनो से प्यार करना होगा, धर्म की राह पर चलना होगा एवं मुंह में राम बगल में छूरी की भावना को त्यागना हाोग तो जीवन में बहुत कम कठीनाइयों का सामना करना पड़ेगा। तब भी कठिनाईयां आति हैं तो निम्नलिखित उपाय बड़े लाभप्रद सिध्द होते हैं।अनुकूलन के उपाय –
इस काल सर्प योग की परेशानियों से बचने के लिए संबंधित जातक को किसी महीने के पहले शनिवार से शनिवार का व्रत इस योग की शांति का संकल्प लेकर प्रारंभ करना चाहिए और उसे लगातार 86 शनिवारों का व्रत रखना चाहिए। व्रत के दौरान जातक काला वस्त्र धारण करें श्री शनिदेव का तैलाभिषेक करें, राहु बीज मंत्र की तीन माला जाप करें। जाप के उपरांत एक बर्तन में जल, दुर्वा और कुश लेकर पीपल की जड़ में डालें। भोजन में मीठा चूरमा, मीठी रोटी, रेवड़ी, तिलकूट आदि मीठे पदार्थों का उपयोग करें। उपयोग के पहले इन्हीं वस्तुओं का दान भी करें तथा रात में घी का दीपक जलाकर पीपल की जड़ में रख दें।
महामृत्युंजय कवच का नित्य पाठ करें और श्रावण महीने के हर सोमवार का व्रत रखते हुए शिव का रुद्राभिषेक करें।
चांदी या अष्टधतु का नाग बनवाकर उसकी अंगूठी हाथ की मध्यमा उंगली में धरण करें। किसी शुभ मुहुर्त में अपने मकान के मुख्य दरवाजे पर चाँदी का स्वस्तिक एवं दोनों ओर धतु से निर्मित नाग चिपका दें।
पंडित पंकज मिश्र । कोलकाता
घातक कालसर्प योग
केतु चतुर्थ तथा राहु दशम स्थान में हो तो घातक कालसर्प योग बनाते हैं। इस योग में उत्पन्न जातक यदि माँ की सेवा करे तो उत्तम घर व सुख की प्राप्ति होता है। जातक हमेशा जीवन पर्यन्त सुख के लिए प्रयत्नशील रहता है उसके पास कितना ही सुख आ जाये उसका जी नहीं भरता है। उसे पिता का भी विछोह झेलना पड़ता है। वैवाहिक जीवन सुखमय नहीं रहता। व्यवसाय के क्षेत्रमें उसे अप्रत्याशित समस्याओं का मुकाबला करना पड़ता है। परन्तु व्यवसाय व धन की कोई कमी नहीं होती है। नौकरी पेशा वाले जातकों को सस्पेंड, डिस्चार्ज या डिमोशन के खतरों से रूबरू होना पड़ता है। साझेदारी के काम में भी मनमुटाव व घाटा उसे क्लेश पहुंचाते रहते हैं। सरकारी पदाधिकारी भी उससे खुश नहीं रहते और मित्रभी धेखा देते रहते हैं। यदि यह जातक रिश्वतखोरी व दो नम्बर के काम से बाहर आ जाएं तो जीवन में किसी चीज की कमी नहीं रहती हैं। सामाजिक प्रतिष्ठा उसे जरूर मिलती है साथ ही राजनैतिक क्षेत्र में बहुत सफलता प्राप्त करता है। उक्त परेशानियों से बचने के लिए जातक निम्नलिखित उपाय कर लाभ उठा सकते हैं।अनुकूलन के उपाय –
नित्य प्रति हनुमान चालीसा का पाठ करें व प्रत्येक मंगलवार का व्रत रखें और हनुमान जी को चमेली के तेल में सिंदूर घुलाकर चढ़ाएं तथा बूंदी के लड्डू का भोग लगाएं।
एक वर्ष तक गणपति अथर्वशीर्ष का नित्य पाठ करें।
शनिवार का व्रत रखें, श्री शनिदेव का तैलाभिषेक व पूजन करें और लहसुनियां, सुवर्ण, लोहा, तिल, सप्तधन्य, तेल, काला वस्त्र, छिलके समेत सूखा नारियल, कंबल आदि का समय-समय पर दान करें।
सोमवार के दिन व्रत रखें, भगवान शिव के मंदिर में चांदी के नाग की पूजा कर अपने पितरों का स्मरण करें और उस नाग को बहते जल में श्रध्दापूर्वक विसर्जित कर दें।
विषधर कालसर्प योग
केतु पंचम और राहु ग्यारहवे भाव में हो तो विषधर कालसर्प योग बनाते हैं। जातक को ज्ञानार्जन करने में आंशिक व्यवधन उपस्थित होता है। उच्च शिक्षा प्राप्त करने में थोड़ी बहुत बाध आती है एवं स्मरण शकित का प्राय: ह्रास होता है। जातक को नाना-नानी, दादा-दादी से लाभ की संभावना होते हुए भी आंशिक नुकसान उठाना पड़ता है। चाचा, चचेरे भाइयों से कभी-कभी मतान्तर या झगड़ा-झंझट भी हो जाता है। बड़े भाई से विवाद होने की प्रबल संभावना रहती है। इस योग के कारण जातक अपने जन्म स्थान से बहुत दूर निवास करता है या फिर एक स्थान से दूसरे स्थान पर भ्रमण करता रहता है। लेकिन कालान्तर में जातक के जीवन में स्थायित्व भी आता है। लाभ मार्ग में थोड़ा बहुत व्यवधान उपस्थित होता रहता है। वह व्यक्ति कभी-कभी बहुत चिंतातुर हो जाता है। धन सम्पत्ति को लेकर कभी बदनामी की स्थिति भी पैदा हो जाती है या कुछ संघर्ष की स्थिति बनी रहती है। उसे सर्वत्रलाभ दिखलाई देता है पर लाभ मिलता नहीं। संतान पक्ष से थोड़ी-बहुत परेशानी घेरे रहती है। जातक को कई प्रकार की शारीरिक व्याधियों से भी कष्ट उठाना पड़ता है।। #पंडितपंकजमिश्रज्योतिषकोलकाता।।