ज्योतिष की सामान्य जानकारी ।

ज्योतिष सीखने की इच्छा अधिकतर लोगों में होती है। लेकिन उनके सामने समस्या यह होती है कि ज्योतिष की शुरूआत कहाँ से की जाये?
ज्योतिष की शुरुआत कुण्डली-निर्माण से करते हैं। ज़्यादातर जिज्ञासु कुण्डली-निर्माण की गणित से ही घबरा जाते हैं
अगर कुछ छोटी-छोटी बातों पर ग़ौर किया जाए, तो आसानी से ज्योतिष की गहराइयों में उतरा जा सकता है। ज्योतिष सीखने के इच्छुक नये विद्यार्थियों को कुछ बातें ध्यान में रखनी चाहिए-

शुरूआत में थोड़ा-थोड़ा पढ़ें।
जब तक पहला पाठ समझ में न आये, दूसरे पाठ या पुस्तक पर न जायें।
जो कुछ भी पढ़ें, उसे आत्मसात कर लें।
बिना गुरू-आज्ञा या मार्गदर्शक की सलाह के अन्य ज्योतिष पुस्तकें न पढ़ें।
शुरूआती दौर में कुण्डली-निर्माण की ओर ध्यान लगायें, साथ ही कुण्डली के विश्लेषण पर ध्यान देना चाहिए।
शुरूआती दौर में अपने मित्रों और रिश्तेदारों से कुण्डलियाँ मांगे, उनका विश्लेषण करें।
जहाँ तक हो सके हिन्दी के साथ-साथ ज्योतिष की अंग्रेज़ी की शब्दावली को भी समझें।
अगर ज्योतिष सीखने के इच्छुक लोग उपर्युक्त बिन्दुओं को ध्यान में रखेंगे, तो वे जल्दी ही इस विषय पर अच्छी पकड़ बना सकते हैं।
ज्‍योतिष के मुख्‍य दो विभाग हैं – गणित और फलित। गणित के अन्दर मुख्‍य रूप से जन्‍म कुण्‍डली बनाना आता है। इसमें समय और स्‍थान के हिसाब से ग्रहों की स्थिति की गणना की जाती है। दूसरी ओर, फलित विभाग में उन गणनाओं के आधार पर भविष्‍यफल बताया जाता है।किसी बच्चे के जन्म के समय अन्तरिक्ष में ग्रहों की स्थिति का एक नक्शा बनाकर रख लिया जाता है इस नक्शे केा जन्म कुण्डली कहते हैं। आजकल बाज़ार में बहुत-से कम्‍प्‍यूटर सॉफ़्टवेयर उपलब्‍ध हैं और उन्‍हे जन्‍म कुण्‍डली निर्माण और अन्‍य गणनाओं के लिए प्रयोग किया जा सकता है। पंकज मिश्र।

पूरी #ज्‍योतिष नौ ग्रहों, बारह राशियों, सत्ताईस नक्षत्रों और बारह भावों पर टिकी हुई है। सारे भविष्‍यफल का मूल आधार इनका आपस में संयोग है। नौ ग्रह इस प्रकार हैं –
ग्रह–>सूर्य-चंद्र-मंगल-बुध-गुरू(बृहस्‍पति)
-शुक्र-शनि-राहु-केतु
आधुनिक खगोल विज्ञान (एस्‍ट्रोनॉमी) के हिसाब से सूर्य तारा और चन्‍द्रमा उपग्रह है, लेकिन भारतीय ज्‍योतिष में इन्‍हें ग्रहों में शामिल किया गया है। राहु और केतु गणितीय बिन्‍दु मात्र हैं और इन्‍हें भी भारतीय ज्‍योतिष में ग्रह का दर्जा हासिल है।
भारतीय ज्‍योतिष पृथ्‍वी को केन्द्र में मानकर चलती है। राशिचक्र वह वृत्त है जिसपर नौ ग्रह घूमते हुए मालूम होते हैं। इस राशिचक्र को अगर बारह भागों में बांटा जाये, तो हर एक भाग को एक राशि कहते हैं। इन बारह राशियों के नाम हैं- मेष, वृषभ, मिथुन, कर्क, सिंह, कन्‍या, तुला, वृश्चिक, धनु, मकर, कुंभ और मीन। इसी तरह जब राशिचक्र को सत्‍ताईस भागों में बांटा जाता है, तब हर एक भाग को नक्षत्र कहते हैं। हम नक्षत्रों की चर्चा आने वाले समय में करेंगे।
एक वृत्त को गणित में 360 अंश (डिग्री) में बाँटा जाता है। इसलिए एक राशि, जो राशिचक्र का बारहवाँ भाग है, 30 कलाओं की हुई। फ़िलहाल ज़्यादा गणित में जाने की बजाय बस इतना जानना काफी होगा कि हर राशि 30 कलाओं की होती है।
हर राशि का मालिक एक ग्रह होता है जो इस प्रकार हैं –
राशि स्वामी ग्रह

  1. मेष-मंगल
  2. वृषभ-शुक्र
  3. मिथुन-बुध
  4. कर्क -चन्द्र
  5. सिंह -सूर्य
  6. कन्या-बुध
  7. तुला-शुक्र
  8. वृश्चिक-मंगल
  9. धनु-गुरू
  10. मकर-शनि
  11. कुम्भ -शनि
  12. मीन-गुरू
    नक्षत्र–जैसा कि पूर्व में बताया गया कि वृत ३६०अंश का होता है.३६०° को १२ राशियों से विभाजित करने पर प्रत्येक राशि ३०° की होती है.निम्न सारिणी से स्पष्ट है-
    नं राशि अंशतक स्वामी

०१ मेष. ००°-३०° भौम
०२ वृष. ३०°-६०° भृगु
०३ मिथुन ६०°-९०° बुध
०४ कर्क. ९०°-१२०° चन्द्र
०५ सिंह. १२०°-१५०° सूर्य
०६ कन्या १५०°-१८०° बुध
०७ तुला १८०°-२१०° भृगु
०८ वृष्चिक २१०°-२४०° भौम
०९ धनु २४०°-२७०° गुरू
१० मकर. २७०°-३००° शनि
११ कुम्भ. ३००°-३३०° शनि
१२ मीन. ३३०°-३६०° गुरू
इसी प्रकार ३६०° अंशों में भी २७ नक्षत्र होते हैं.
ये २७ नक्षत्र निम्न है–
०१-अश्विनी. ०२-भरणी. ०३-कृतिका.
०४-रोहिणी. ०५-मृगशिरा. ०६-आर्द्रा.
०७-पुनर्वसु. ०८-पुष्य. ०९-आश्लेषा.
१०-मघा. ११-पूर्वा फाल्गुनी.१२-उ.फाल्गुनी
१३-हस्ता.१४-चित्रा.१५-स्वाति.
१६.विशाखा.१७-अनुराधा.१८-ज्येष्ठा.
१९-मूला.२०-पूर्वाषाढा.२१-उत्तराषाढा.
२२-श्रवण.२३-धनिष्ठा.२४-शतभिषा.
२५-पूर्वाभाद्रपद.२६-उत्तराभाद्रपद.२७-रेवती.
इस प्रकार प्रत्येक नक्षत्र १३°२०'(अंश-कला) का होता है.जन्म के समय जातक जिस चन्द्र नक्षत्र में पैदा होता है जातक का नाम संस्कार उसी राशि-नक्षत्र में आने वाले नामाक्षर पर रखते हैं.

इन्हीं नक्षत्रों के आधार पर जातक की विभिन्न दशाऐं जन्म के समय लागू होती है.जैसे>>
१.अश्विनी-मघा-मूला–>केतु(०७ वर्ष)
२भरणी-पू.फाल्गुनी-पू़षा़–>शुक्र(२० वर्ष)
३कृतिका-उ.फा.-उ.षा.–>सूर्य(०६ वर्ष)
४रोहिणी-हस्ता-श्रवण–>चन्द्र(१० वर्ष)
५मृगशिरी-चित्रा-धनिष्ठा–>भौम(०७ वर्ष)
६आर्द्रा-स्वाति-शतभिषा–>राहु(१८ वर्ष)
७पुनर्वसु-विशाखा-पूर्वाभाद्र–>गुरू(१६ वर्ष)
८पुष्य-अनुराधा-उ.भाद्रपद–>शनि(१९ वर्ष)
९आश्लेषा-ज्येठा-रेवती–>बुध(१७ वर्ष)
इस प्रकार जन्म नक्षत्र के भुक्त-भोग्य से दशा का विवेचन किया जाता । #पण्डितपंकजमिश्र #ज्योतिषी_कोलकाता।

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